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मानव विश्वमित्र एक ढीला-सा, ढाला-सा व्यक्ति है। बुद्धि शायद है पर इस्तमोल करने का कष्ट अब कौन उठाये। वैसे ही वह अपने मित्रों से बहुत परेशान है, ऊपर से रघुवर नाथ और उसकी रूपगर्विता पत्नी प्रेमा उसके घर में मेहमान हैं। उसके बचपन का मित्र गोविंद शर्मा एक तड़कीला-भड़कीला युवक है जो दिल हाथ में लिए उछालता फिरता है कि कोई तो हो जो उसे लोप ले। इस बार लोपा रघु की पत्नी प्रेमा ने।आप मिलेंगे धनंजय से जिसे डाक्टर सुगंधा ने घायल किया हुआ है। यहाँ पर डरजीत कुमार भी है जो बहुत सोच-विचार कर पूरे आत्मविश्वास के साथ जयमाला के सामने अपना प्रेम-प्रस्ताव रखता है। जयमाला ने क्या किया यह तो नाटक में ही पता चलेगा। और इन सब के बीच में रघु रचता है एक षडयंत्र। वह भरी महफिल में बंटी को आत्महत्या के लिए उकसाता है। क्या वह स्वयं ही अपने रचे षडयंत्र का शिकार हो जाता है? अनोखे पात्रों वाला हँसी-ठहाकों से भरपूर नाटक।
अशोक अवंती में ही रम गया था। यौवन की देहली थी और महादेवी का सान्निध्य। पर मौर्य साम्राज्य को सिंहासन का उत्तराधिकारी चाहिए था। महादेवी ने अनिच्छुक अशोक को पाटलीपुत्र जाने के लिए बाध्य किया। स्वयं महेन्द्र और संघमित्रा के साथ अवंती में ही रह गयी। उसने अशोक से कहा था, पहले तुम साम्राज्य के हो फिर मेरे हो। अशोक पाटलीपुत्र गया। विविधताओं से भरे एक विशाल साम्राज्य को एक शासन सूत्र और जाति-घर्म-वर्ग से ऊपर एक दण्डसंहिता में बाँधा। अपने आदेश-संदेश कई भाषाओं में शिलालेखों में अंकित करवाये। अल्प समय में ही वह इस विशाल साम्राज्य के जनमानस का आदरणीय और आदर्श बन गया।युवराज सुशीम, राजकुमार ऋपुदमन और सुकीर्ति की असमय मृत्यु उसे उद्वेलित करती रहती थी। सारे साक्ष्य कलिंग राजसभा की ओर इंगित करते थे, विशेष कर नंदवंश के महानंद की ओर। पर उसके अशांत मन में एक सम्राट की वर्जनाओं का ढक्कन लगा हुआ था। एक उन्माद था जिसमें आगामी युद्ध की संभावना परिलक्षित थी।
नाटककार मथुरा कलौनी की कलम से जीवन की भिन्न दशाओं एवं परिस्थितियों में फँसे मनुष्यों पर चार सशक्त लघु नाटकों का कोलाज है दशा।लंगड़ - श्रीलाल शुक्ल के कालजयी उपन्यास रागदरबारी का पात्र लंगड़ एक ऐसे धर्म की लड़ाई में फँसा है जहाँ व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार के नियम-कानून हैं। भ्रष्टाचार की आचारसंहिता है। नकलनबीस और लंगड़ के बीच का नैतिक द्वंद्व व्यवस्था में प्रच्छन्न भ्रष्टाचार पर स्पॉटलाइट है।तू नहीं और सही - लिव-इन रिलेशनशि]प की आड़ में रिश्तों की गहराई को तलाशती और जीवन से जूझती एक पूर्णतया भावनात्मक मोह-प्रलोभन से मुक्त नारी की व्यथा-कथा है।चिराग का भूत -घरेलू चिंताओं में फँसे एक आम आदमी को अलादीन का चिराग मिलता तो है पर जिन्न से क्या माँगे के संशय में वह जिन्न को नून-तेल-लकड़ी के जाल में इतना उलझा देता है कि जो परिणाम होता है वह कल्पनातीत है।कौन हो तुम बृहन्नला - बृहन्नला के प्रति उत्तरा की जिज्ञासा के माध्यम से समाज के हाशिये पर खड़े किन्नरों की दशा में झाँकता हुआ नाटक।
सींग कटा कर नाटक मंडली के बछड़ों में शामिल हुए थे परमानंद काका, पर ऐन मौके पर बीमार पड़ गये और आवाज तक बैठ गयी। ऐसे में रुकुमा का प्रवेश होता है। रुकुमा का कहॉं तो एकदम व्]यवस्थित धरेलू जीवन था। शादी पहले से ही तय थी। और यहाँ नाटक मंडली में स्]टेज में लड़की का भेष धारे गजेन्]द्र से टकराती है। प्]यार में ऐसे डूबती है कि सब संयम दरकिनार हो जाते हैं। धनसिंह को लगता था कि गजेन्द्र और रुकुमा का प्यार कुमाऊँ की प्रेमकथा का एकदम आधुनिक और आकर्षक संस्करण है। कैसा था उनका प्रेम? नायक अपनी नायिका से प्रथम मिलन में एक लोकगीत के सहारे पूछता है कि हे प्रेयसी, जाई और चंपा के फूल खिले हैं। खेत में सरसों फूली है। आज के दिन इस महीने हम मिले हैं, अब फिर कब होगी भेंट? जब भेंट हुई तो सिर में डंडे खाये, पहाड़ की चोटी से धकेला गया। याददास्]त तक चली गयी। वह तो भला हो चिंतामणि वैद्य और उसकी नातिनी का कि समय लगा पर याददास्त लौट आयी। इस बीच रुकुमा पर क्या बीती? हास्य रस से भरपूर, उत्]तराखण्]ड में रची-बसी एक बेहद दिलचस्प प्रेम कहानी।
यह हास्य और रोमांच के दो लघु उपन्यासों का संकलन है। चंद्रभवन तृप्तिभवन दो मित्रों की आपस में गुत्थमगुत्था उलझी हुई प्रेम कहानियों की हास्य रस से भरपूर दास्तान है। केशव और दीपा का प्रेम इसलिए आगे नहीं बढ़ पा रहा है कि केशव सर्वथा धनहीन है। उसके धनवान होने की चाभी उसके मित्र माधव के पास है। माधव की प्रेमिका कांता का विवाह केशव से होना तय है। इस गुत्थी को सुलझाने के लिए चारों एक योजना बनाते हैं जिसमें मुख्य भूमिका एक ककड़ी की होती है... हास्य रस से भरपूर अनोखे पात्रों की अनूठी कहानी।विषकन्या, एक डिफेंस कन्या सरिता की रोमांचक कहानी है। सरिता को कोई ट्रैक कर रहा है और समय-समय पर उसे गुमनाम फोन करता है या ईमेल भेजता है। सरिता एक डिटेक्टिव एजेंसी के पास जाती है, फिर आरंभ होता है एक रोलर-कोस्टर घटनाक्रम जिसमें आत्महत्या है, रहस्य है, रोमांच है और भरपूर हास्य तो है ही।
Ek Shaam Premchand Ke Naam is an anthology of Premchand's short stories and stage adaptations of the same, along with glimpses into some of his defining life events. The narrative is very engrossing and presentation very dramatically visual. Kafan - A dark comedy and a heart-wrenching story. It deals with the survival instincts of the dirt poor. Sadgati - Premchand deals with the social exploitation of the untouchables, their abject poverty and their dehumanization by the upper class. A dark truth which keeps re-surfacing even in today's India... Panch Parmeshwar- A story of responsible behavior, when you are put in a position of power. Poos Ki Raat- A story of a poor farmer who struggles to ward off the bitter cold of winter nights, with only his dog for company. Premchand believed that literature is a powerful means to raise social awareness. His greatness lies in the fact that he lived by the principles he so effectively weaved in his stories. The life events of Munshi Premchand and his great stories come alive in this very visual style of presentation in Ek Shaam Premchand Ke Naam.
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