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Bøker av Phani Mohanty

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  • av Phani Mohanty
    370,-

    चारों दिशाएँ, चौदह भुवन खाली-खाली लगते हैं, एक अध-जला दीया की रस्सी की तरह नाम के वास्ते हाथ-पैर पसारकर, गिरा हुआ हूँ मैं। यह कैसा जीवन है प्रियतमा? हर पल मैं कितने शब्द जोड़ता हूँ और तोड़ता हूँ, जुड़े-तुड़े इन्हीं शब्दों से मैं एक वाक्य की माला भी बना नहीं सका, इस जीवन में। करोड़ों तारों और चाँद और सूरज के मेले में, तुम ही तो मेरे साक्षी हो, तुम ही मेरे साक्षी हो भाव में रहकर भी कवि मर सकता है, अभाव के नरक में। इस जीवन को अकेले में जाने दो, प्रियतमा, चाहे तुम जितने न पहुँचनेवाले दुनिया में, तुम ही मेरी प्रथम और आखिरी वर्णमाला तुम ही मेरा प्रथम और आखिरी वादा। -इसी पुस्तक से

  • av Phani Mohanty
    203,-

  • av Phani Mohanty
    203,-

  • av Phani Mohanty
    249,-

  • av Phani Mohanty
    219,-

    Priyatama is a poetry collection by eminent Odia poet Phani Mohanty. A prolific Odia poet, Phani Mohanty has more than sixteen poetry collections into his credit. He has received Odisha Sahitya Academy award for the poetry collection "Bishadjoga" and Central Sahitya Academy award for the poetry collection "Mrugaya".

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