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Bøker av Ramdhari Singh Diwakar

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  • av Ramdhari Singh Diwakar
    420,-

    गाँव की टूटती-बिखरती समाजार्थिक व्यवस्था में छीजते जा रहे मानवीय मूल्यों को कथान्वित करने वाला यह उपन्यास दाखिल खारिज रामधारी सिंह दिवाकर की नवीनतम कथाकृति है। अपने छूटे हुए गाँव के लिए कुछ करने के सपनों और संकल्पों के साथ प्रोफेसर प्रमोद सिंह का गाँव लौटना और बेरहमी से उनको खारिज किया जाना आज के बदलते हुए गाँव का निर्मम यथार्थ है। यह कैसा गाँव है जहाँ बलात्कार मामूली-सी घटना है। हत्यारे, दुराचारी, बलात्कारी और बाहुबली लोकतांत्रिक व्यवस्था और सरकारी तंत्र को अपने हिसाब से संचालित करते हैं। सुराज के मायावी सपनों की पंचायती राज-व्यवस्था में पंचायतों को प्रदत्त अधिकार धन की लूट के स्रोत बन जाते हैं। सीमान्त किसान खेती छोड़ 'मनरेगा' में मजदूरी को बेहतर विकल्प मानते हैं। ऐसे विकृत-विखंडित होते गाँव की पीड़ा को ग्रामीण चेतना के कथाशिल्पी रामधारी सिंह दिवाकर ने पूरी संलग्नता और गहरी संवेदना से उकेरने का प्रयास किया है। हिन्दी कथा साहित्य से लगभग बहिष्कृत होते गाँव को विषय बना कर लिखे गए इस सशक्त उपन्यास को 'कथा में गाँव के पुनर्वास' के रूप में भी देखा-परखा जाएगा, ऐसी आशा है।

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