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विवेक शैलार एक ऐसे कवि हैं जिन्होंने अनेकानेक कवितायें लिखीं और उन्होंने कविता लिखना बचपन से ही आरम्भ कर दिया था । किन्तु उन्हें अपनी कविताओं के प्रकाशन हेतु लम्बा इंतज़ार करना पड़ा जो की आज पेंसिल पब्लिकेशन के कारण संभव हो पा रहा है । ये कवितायें न सिर्फ संघर्ष की प्रेरणा देती हैं, बल्कि दर्द और उदासी से भरे मन को सुकून के अहसास तक ले जाती हैं । कहीं सच्चाई का अहसास करवाती हैं, तो कहीं उम्मीद और उत्साह भर देती हैं । कहीं देश प्रेम की भावना से जज्बातों में उबाल ला देती हे तो कही ज़माने भर को चुनौती देती हैं । उम्मीद करता हूँ की पाठकगण इन्हे पढ़कर न सिर्फ एक नए जोश से सराबोर हो जायेंगे, बल्कि ख्यालों और विचारों के एक नए जगत में प्रवेश उनकी कल्पना को जीवन के उच्चतम शिखर तक ले जायेगा । इन्ही भावनाओं के साथ । आपका विवेक शैलार MB- 9893312811. email id: - vivek123shelar@gmail.com
पुस्तक के संदर्भ में जेलखाना हो या महिला छात्रावास,कॉलेज होस्टल हो या होटल,रेलवे स्टेशन हो या बस अड्डा,सड़क किनारे स्थित ढाबा,लाइन होटल हो या फिर बालिका गृह,महिला आवास गृह सभी जगहों पर देह व्यापार ने अपनी जड़ें जमा ली हैं ।बहुत जगहों पर तो सेक्स वर्करों को लाइसेंस तक होता है लेकिन इन लाइसेंसी सेक्स वर्करों से कई गुना ज्यादा गैर लाइसेंसी और हाई फाई सेक्स वर्कर हैं । लेखक ने अपनी पुस्तक के माध्यम से जिन समस्याओं को उभारा है,उस पर सरकार और समाज को गंभीरता से विचार करना चाहिए ।व्यापक सुधार के प्रयास होना चाहिए अन्यथा इस देश की संस्कृति नष्ट होने के कगार पर पहुंच जाएगी ।
व्यापार की दुनिया में एक स्टार्ट-अप एक कंपनी है जिसे एक बड़े बाजार को आकर्षित करके बहुत तेज़ी से बढ़ने के लिए डिज़ाइन किया गया है। आमतौर पर स्टार्ट-अप बोलना अपनी प्रारंभिक अवस्था में एक कंपनी है, हालांकि हर नवगठित कंपनी स्टार्ट-अप नहीं है। वास्तव में, दुनिया में हर साल लाखों कंपनियां शुरू होती हैं लेकिन केवल छोटे अंशों को स्टार्ट-अप माना जाता है। इसके अतिरिक्त, स्टार्ट-अप अक्सर विघटनकारी होते हैं I वे ऐसे उत्पादों या सेवाओं का उत्पादन या संचालन करते हैं जो अभी तक अस्तित्व में नहीं हैं या किसी उद्योग में किसी विशेष अच्छा या सेवा के वितरण को काफी बदल रहे हैं। एक स्टार्ट-अप आमतौर पर उन मूल्यवान विचारों की तलाश में रहता है, जिन्हें ज्यादातर आम जनता या तो समझ नहीं पाती है या बस समझ नहीं पाती है।
मेरी मातृभाषा तमिल है। स्कूल में अंग्रेजी भाषा सीखते समय मुझे मालूम हुआ कि एक और भाषा सीखना दिलचस्प बात है। इसलिए जब हमारे एक रिश्तेदार हिंदी सिखाने के बारे मां से बातचीत करते समय उसे सुनकर मैं खुशी से हिंदी सीखने के लिए उनके पास गयी। धीरे-धीरे हिंदी पढ़ने में दिल लगा और पीएचडी करने तक पहुंच गई।
कविताएँ हृदय को झंकृत करती है, यह कला संसार की ऐसी विद्या है, जिसे हम पढते तो आँखों से है, लेकिन यह हृदय की गहराई में उतर जाती है। संभवतः यही कारण भी है कि रचनाकार अपनी कविताओं को सुगम बनाता है,सरल बनाता है कि वो हरेक इंसान के हृदय को छू सके। फिर ऐसा भी तो है कि कविता समाज का ही आईना होता है, आखिरकार यह उद्धत भी तो समाज के प्र-वर्तमान परिस्थिति, परिवेश,घटित हो रहे घटना का प्रतिबिंब बन कर होता है। कविता में वर्तमान की गहराई, भूतकाल का अंदेशा और भविष्य की आकांक्षा छुपी होती है, जिसे कवि/ लेखक अपने लेखनी के द्वारा उतार लेता है। कविता समय की मांग के अनुसार बदल जाती है, लेकिन उसके तादात्म्य नहीं टूट पाते, वो वर्तमान,भूतकाल और भविष्य का प्रतिनिधित्व करती है और करती रहेगी। मदन मोहन (मैत्रेय)
प्रस्तुत पुस्तक में व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक पल को प्रेरणा का स्रोत बताने का प्रयास किया है, व्यक्ति जीवन पर्यन्त किसी न किसी रिश्ते अथवा अहसास से जुड़ा रहता है जो उसे प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से प्रेरित करता है। प्रत्येक क्षण के इसी एहसास को प्रेरणा बनाकर सकारात्मक रूप से जीवन में उतारने का प्रयास इस पुस्तक में रचित कविताओं के माध्यम से किया गया है। इसमें व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन के प्रत्येक क्षण के एहसास और सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान किया गया हैं और जीवन की वास्तविकता को प्रकट किया है जो सबकी जिंदगी से अत्यधिक करीब से जुड़ी हुई है
कम्बख्त यादें' यह यादें मेरी और आपकी जिंदगी का वो हिस्सा है। जो मुझे अक्सर घर में पड़े चूल्हे के कोयले की तरह लगती है। जो सबकी जिंदगियों में सिर्फ एक बार ही जलता है। (जिया जाता) और यादों की हवा चलने पर हमारे अंदर ही धीरे - धीरे सुलगता है। सुलगते सुलगते जब कोयला रुपी यादें थक जाती हैं तो राख बन जाती है। और हमारे दिल के किसी हिस्से में दफन हो जाती है। इसी राख से जन्म लेती हैं यह कम्बख्त यादें।
अपनी बात.. सबसे पहले करूँ याद मेरे ह्रदय में,सँजोये मेरे माता पिताजी के,आशीर्वाद को जिनके कारण में आज इस दुनिया में हूँ,वे नहीं अभी मेरे साथ पर उनका आशीर्वाद जीवनपर्यंत मेरे साथ रहा,उनकी याद उनकी स्मृति को सादर प्रणाम।। आदमी जो भोगता है, वही उसका अनुभव,वेदना,ज्ञान, बरबस उसकी कविता में झलकता है,प्रभावित करता है, मेरे मन में जो,कविता है,वो मेरा भोगा हुआ यथार्थ है। अपने आसपास घटित हो रही एक आम हिंदुस्तानी की रोजमर्रा की,ज़िन्दगी पर उसका अवलोकन,जो कविता,के रूप में प्रकट हुआ। में अब क्या कहूँ,कहा बहुत कुछ,अब,समझ ही,लेना, लहज़े में कुछ कमी हो,तो,मेरे चेहरे ही,को पढ़ लेना, कभी होती है,किसी,शख्स को दर्द की,इंतिहा इतनी, उसे,बयां किसे, करे,कैसे करे,अक्सर,सूझता ही नहीँ, जयेश वर्मा
ये कविताओं का एक संकलन है। इन कविताओं ने कहीं ना कहीं ज़िन्दगी के हर पहलू को छुआ है। चाहे समाज की कुरितिओं पर सवाल हों या फिर प्रेम की मीठी चुभन। किसी कविता में एक लड़की का अपने पिता बिछड़ने का ख्याल है तो कोई कविता फिर से माँ की गोद में सोने की चाह है। इस किताब की हर कविता आपको कहीं आपका बचपन याद दिलाएगी तो कहीं आज के जीवन के खोखलेपन को उजागर भी करेगी। ये भी हो सकता है कोई कविता आपको आपके पुराने प्यार की याद दिला जाए और कोई कविता पढ़कर आपको बचपन के दोस्तों की याद जाए। ये कविताएँ सरल हिंदी भाषा में लिखी गई हैं ताकि इनसे कोई भी जुड़ सके
मैं ने इस पुस्तक में ऐसी कविताओं का संग्रह किया है,जो कि अलग-अलग समय पर अलग-अलग परिस्थितियों में मानविय मन का प्रतिनिधित्व करते है।ये कवितायें मानविय मुल्यों को संवारती है, सहेजती है और सहज ही आत्मसात कर लेती है।कविता बस्तुत एक परिस्थिति परक दर्पण सा होता है,जो अपने वर्तमान समय का अक्स अपने में उतार लेता है।मैं ने भी बस इतनी कोशिश की है कि यह काव्य संग्रह समाज के हर वर्ग को पसंद आए। आपका अपना मदन मोहन(मैत्रेय)
"कुछ शब्द और....(क्यूंकि काफी कुछ कहना है)", एक कविता संकलन है। प्रेम, प्रकृति व समाज में होने वाली गतिविधियों को कविताओं के रूप में बताया गया है। ये किताब उन सभी पाठको के लिए उचित है जो कविताओं में रुचि रखते हैं तथा खुद भी लिखने का प्रयत्न करते हैं।
यह बाल कथाएं हमारे आसपास के समाज मे गैर कानूनी गतिविधियों में संलग्न लोगो के दास्तान कहती हैं। किशोरों को बहुत सहज तरीके से ऐसी आपराधिक गतिविधियों से भिड़ जाने की प्रेरणा देती यह कथाएँ किन्ही विशिष्ट बच्चों की कहानियां नहीं, आप और हमारे बीच घूमते पढ़ते खेलते बच्चो की कथाएं हैं आज गली गली में झोला छाप डॉक्टरों की फौज उग आयी है जिनको सस्ती और नकली दबाएं खरीद कर पैसे कमाने का नशा है,ऐसे डॉक्टर और नकली दवाओं के कारखानों का रहस्य उजागर करती कहानी "हत्यारी दवा" बाल जासुस अजय और अभय की एक रोचक दास्तान है। समाज को नशे का आदी बनाते अपराधी लोग अब अब किशोरों को भी अपने ग्राहक बना रहे है, कहानी "नशे के सौदागर" में ऐसे अजय ऐसे अपराधियों को जेल के सींखचे को पीछे पहुँचाने में पुलिस की मदद करता है कहानी जासूस करमचंद में नाटक में जासूस बना अजय स्कूल में पोटैशियम साइनाइड चुराने वाले चोर की खोज करता है
I, Ashish Kumar, currently residing in Delhi, is basically from Haridwar, Uttarakhand. Before छाले धूप के till date my below ten books have been published: 1) Love Incomplete 2) क्या है हिंदुस्तान में 3) Detail Geography of Space 4) The Ruiner 5) सच्चाई कुछ पन्नो में 6) कुछ अनोखे स्वाद और बातें 7) पूर्ण विनाशक 8) मोहल्ला 90 का 9) Samudramanthanam 10) Avyakhyaam
हाइकु एक सत्रह वर्णीय कविता है. इसे वार्णिक कविता कह सकते हैं. त्रिपदीय मुक्तक में तीन पंक्तियां होती हैं. तीनों अपने आप में पूर्ण होती हैं. तीनों का अलग अर्थ होता हैं. तीनों पंक्तियां मिला कर एक वाक्य बनाती हैं. जापान में श्रृखंलाबंद्ध काव्यरचना की जाती थी. एक व्यक्ति तीन पंक्तियों यानी सत्रह वर्णों में अपनी बात कर कर छोड़ देता है. दूसरे व्यक्ति उसी भाव, भाषा और छंद में अपनी बात को आगे बढ़ाता है.इस तरह एक श्रृंखलाबद्ध काव्य रचना रची जाती हैं. इसे रेंगा कहते हैं. रेंगा के एक छंद यानी सत्रह वर्णीय भाग को होक्कू कहते थे. कालांतर में यह होक्कू स्वतंत्र रूप में रचे जाने लगे. इसे ही काव्य के रूप में हाइकु कहा जाने लगा. हाइकु का अपना रचना विधान है. यह तीन पंक्तियों में रची जानी वाली रचना है. पहली पंक्ति में 5 वर्ण होते हैं. बीच की पंक्ति में 12 वर्ण और अंतिम पंक्ति में पुन 5 वर्ण होते हैं.
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