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Bøker utgitt av Prabhakar Prakshan

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  • av Premchand
    172,-

  • av Premchand
    172,-

  • av Premchand
    209,-

  • av Dale Carnegie
    197,-

  • av Premchand
    209,-

  • av Dale Carnegie
    179,-

  • av Premchand
    234,-

  • av Paramhans Yoganand
    209,-

  • av Premchand
    195,-

    प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 को वाराणसी के निकट लम्ही ग्राम में हुआ था। उनके पिता अजायब राय पोस्ट ऑफिस में क्लर्क थे। वे अजायब राय व आनन्दी देवी की चौथी संतान थे। पहली दो लड़कियाँ बचपन में ही चल बसी थीं। तीसरी लड़की के बाद वे चौथे स्थान पर थे। माता पिता ने उनका नाम धनपत राय रखा। सात साल की उम्र से उन्होंने एक मदरसे से अपनी पढ़ाई-लिखाई की शुरुआत की जहाँ उन्होंने एक मौलवी से उर्दू और फारसी सीखी। जब वे केवल आठ साल के थे तभी लम्बी बीमारी के बाद आनन्दी देवी का स्वर्गवास हो गया। उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली परंतु प्रेमचंद को नई माँ से कम ही प्यार मिला। धनपत को अकेलापन सताने लगा। वाराणसी के एक वकील के बेटे को 5 रु महीना पर ट्यूशन पढ़ाकर जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ी। कुछ समय बाद 18 रु महीना की स्कूल टीचर की नौकरी मिल गई। सन् 1900 में सरकारी टीचर की नौकरी मिली और रहने को एक अच्छा मकान भी मिल गया। धनपत राय ने सबसे पहले उर्दू में 'नवाब राय' के नाम से लिखना शुरू किया। बाद में उन्होंने हिंदी में प्रेमचंद के नाम से लिखा। प्रेमचंद ने 300 से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनकी कहानियों का अनुवाद विश्व की अनेक भाषाओं में हुआ है। प्रेमचंद ने मुंबई में रहकर फिल्म 'मज़दूर' की पटकथा भी लिखी। प्रेमचंद काफी समय से पेट के अलसर से बीमार थे, जिसके कारण उनका स्वास्थ्य दिन-पर-दिन गिरता जा रहा था। इसी के चलते 8 अक्टूबर, 1936 को कलम के इस सिपाही ने सब से विदा ले ली।

  • av Premchand
    225,-

    प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 को वाराणसी के निकट लम्ही ग्राम में हुआ था। उनके पिता अजायब राय पोस्ट ऑफिस में क्लर्क थे। वे अजायब राय व आनन्दी देवी की चौथी संतान थे। पहली दो लड़कियाँ बचपन में ही चल बसी थीं। तीसरी लड़की के बाद वे चौथे स्थान पर थे। माता पिता ने उनका नाम धनपत राय रखा। सात साल की उम्र से उन्होंने एक मदरसे से अपनी पढ़ाई-लिखाई की शुरुआत की जहाँ उन्होंने एक मौलवी से उर्दू और फारसी सीखी। जब वे केवल आठ साल के थे तभी लम्बी बीमारी के बाद आनन्दी देवी का स्वर्गवास हो गया। उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली परंतु प्रेमचंद को नई माँ से कम ही प्यार मिला। धनपत को अकेलापन सताने लगा। वाराणसी के एक वकील के बेटे को 5 रु महीना पर ट्यूशन पढ़ाकर जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ी। कुछ समय बाद 18 रु महीना की स्कूल टीचर की नौकरी मिल गई। सन् 1900 में सरकारी टीचर की नौकरी मिली और रहने को एक अच्छा मकान भी मिल गया। धनपत राय ने सबसे पहले उर्दू में 'नवाब राय' के नाम से लिखना शुरू किया। बाद में उन्होंने हिंदी में प्रेमचंद के नाम से लिखा। प्रेमचंद ने 300 से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनकी कहानियों का अनुवाद विश्व की अनेक भाषाओं में हुआ है। प्रेमचंद ने मुंबई में रहकर फिल्म 'मज़दूर' की पटकथा भी लिखी। प्रेमचंद काफी समय से पेट के अलसर से बीमार थे, जिसके कारण उनका स्वास्थ्य दिन-पर-दिन गिरता जा रहा था। इसी के चलते 8 अक्टूबर, 1936 को कलम के इस सिपाही ने सब से विदा ले ली।

  • av Premchand
    209,-

    प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 को वाराणसी के निकट लम्ही ग्राम में हुआ था। उनके पिता अजायब राय पोस्ट ऑफिस में क्लर्क थे। वे अजायब राय व आनन्दी देवी की चौथी संतान थे। पहली दो लड़कियाँ बचपन में ही चल बसी थीं। तीसरी लड़की के बाद वे चौथे स्थान पर थे। माता पिता ने उनका नाम धनपत राय रखा। सात साल की उम्र से उन्होंने एक मदरसे से अपनी पढ़ाई-लिखाई की शुरुआत की जहाँ उन्होंने एक मौलवी से उर्दू और फारसी सीखी। जब वे केवल आठ साल के थे तभी लम्बी बीमारी के बाद आनन्दी देवी का स्वर्गवास हो गया। उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली परंतु प्रेमचंद को नई माँ से कम ही प्यार मिला। धनपत को अकेलापन सताने लगा। वाराणसी के एक वकील के बेटे को 5 रु महीना पर ट्यूशन पढ़ाकर जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ी। कुछ समय बाद 18 रु महीना की स्कूल टीचर की नौकरी मिल गई। सन् 1900 में सरकारी टीचर की नौकरी मिली और रहने को एक अच्छा मकान भी मिल गया। धनपत राय ने सबसे पहले उर्दू में 'नवाब राय' के नाम से लिखना शुरू किया। बाद में उन्होंने हिंदी में प्रेमचंद के नाम से लिखा। प्रेमचंद ने 300 से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनकी कहानियों का अनुवाद विश्व की अनेक भाषाओं में हुआ है। प्रेमचंद ने मुंबई में रहकर फिल्म 'मज़दूर' की पटकथा भी लिखी। प्रेमचंद काफी समय से पेट के अलसर से बीमार थे, जिसके कारण उनका स्वास्थ्य दिन-पर-दिन गिरता जा रहा था। इसी के चलते 8 अक्टूबर, 1936 को कलम के इस सिपाही ने सब से विदा ले ली।

  • av Premchand
    185,-

  • av Devaki Khatri Nandan
    209,-

    किसी तरह किसी की लौ तभी तक लगी रहती है जब तक कोई दूसरा आदमी किसी तरह की चोट उसके दिमाग पर न दे और उसके ध्यान को छेड़ कर न बिगाड़े, इसीलिए योगियों को एकांत में बैठना कहा है। कुँवर वीरेंद्र सिंह और कुमारी चन्द्रकांता की मुहब्बत बाज़ारू न थी, वे दोनों एक रूप हो रहे थे, दिल ही दिल में अपनी जुदाई का सदमा एक ने दूसरे से कहा और दोनों समझ गए मगर किसी पास वाले को मालूम न हुआ, क्यूंकि ज़ुबान दोनों की बंद थी। -देवकीनन्दन खत्री

  • av Mahamata Tolstoy
    139,-

  • av Jaishankar Prasad
    165,-

  • av Mango Ram
    139,-

    देव-भूमि हिमाचल के गाँव, बीर बगेड़ा में श्री 'मांगो राम' का जन्म, 25 फरवरी 1935 ई. में हुआ था। बालपन से ही आपका ध्यान श्री दुर्गा माता जी की ओर आकर्षित रहा। आपने हाई स्कूल मैट्रिक की परीक्षा सुजानपुर कांगड़ा से 1956 ई. में पास की, तत्पश्चात दिल्ली स्थानांतरित हुए और सेना मुख्यालय में अधीक्षक के पद पर रहते हुए स्नातक की परीक्षा भी उत्तीर्ण की। समयानुसार माता-पिता का साया भी सिर पर न रह पाया। अतः 1968 ई. में आपका विवाह हुआ। अक्सर प्रकृति में लीन आपका मन, पुकार उठता- ''इस संसार को चलाने वाली शक्ति, कोई अवश्य सच्ची शक्ति है'', अतः असंख्य कठिनाइयों में भी अच्छे-बुरे की परख रही, आत्मबल, धीरज, सहनशीलता, स्वच्छता, जीवों के प्रति दया भाव और लोगों की भलाई के लिए सदैव तत्पर रहे। अत्यधिक विश्वास और सत्यता से, परीक्षा अवधि काल में दिव्य-'सच्ची शक्ति' के सुदर्शन प्राप्त हुए। और उन्हें 'अपर् ब्रह्म परम् भक्त देव ऋषि' की उपाधि दी। आपने अपने जीवन अनुभव व दिव्य शक्ति द्वारा प्राप्त ज्ञान-भंडार को लिपिबद्ध किया, जो संपूर्ण मानव जाति के हित में है। आपका निधन 30 अक्टूबर 1992 ई. में हुआ। आपकी प्रस्तुत पुस्तक 'सूर्य की किरणें' सामाजिक जीवन के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों और रहस्यों को उजागर करती है, जो संपूर्ण मानवजाति के कल्याण के लिए अति आवश्यक है। पुस्तक किसी भी धर्म, जाति, संप्रदाय और अवतारवाद की मान्यताओं से सर्वथा भिन्न सत्यता के ज्ञान को प्रकट करती है। अतः यह पुस्तक जीवन में सरल ज्ञान को आत्मसात कर नई ऊर्जा का संचार करने में लाभदायक है।

  • av Bankimchnadra Chattopadhyay
    145,-

  • av Bankimchnadra Chattopadhyay
    172,-

  • av Bankimchnadra Chattopadhyay
    139,-

  • av Satyanarayan Dr Vyas
    141,-

  • av Bankimchnadra Chattopadhyay
    172,-

  • av Bankimchnadra Chattopadhyay
    172,-

  • av Premchand
    141,-

  • - Vividh Paridhrish
    av Shubham Gupta
    172,-

  • av Deepak Gond Kumar
    193,-

  • av Suman Kumari
    141,-

  • av Shashikant Sadaiv
    165,-

  • av Shashikant Sadaiv
    172,-

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