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नींद हमारी, ख़्वाब तुम्हा

Om नींद हमारी, ख़्वाब तुम्हा

'नींद हमारी, ख़्वाब तुम्हारे' के पात्र-पात्री के नाम काल्पनिक हैं, पर घटना मेरे अनुभव पर आधारित है इसमें कहीं भी मेरी कल्पना की हवाई उड़ान, आपको नहीं मिलेगी पर हाँ, घटना में रंग भरने की कोशिश मैंने अवश्य की है मगर ऐसा करते, मैंने इस बात का पूर्णतया ख्याल रखा है, कि कहीं पर भी बेवजह रंग की अधिकता, या न्यूनता नहीं हो, साथ ही किसी भी पात्र-पात्री के साथ शब्दों का चयन करते वक्त बेइंसाफी न हो जिनको जितना अधिकार प्राप्त है, उतना ही अधिकार मिले, उससे बंचित न रह जाये इसके लिए, कहानी लिखने बैठने से पहले मैं अपना क्रोध, लोभ, इर्ष्या, दोस्ती, घृणा, तथा पीड़ा इत्यादि को अपने दिल से निकाल देती हूँ, जिससे कि इंसाफ करते, ये सभी इनके बीच दीवार बनकर खड़े न हो जायें और मैं स्वतंत्र होकर लिख सकूँकिसी घटना से सम्मोहित होकर उसे कहानी का रूप मैं नहीं देती, जब तक कि कहानी किसी दार्शनिक और भावनात्मक सत्य को प्रकट न करे जब तक इस प्रकार का कोई आधार नहीं मिलता, मेरी कलम नहीं उठती एक बात और, मैं किसी भी हाल में अपने पाठकों को अपने शब्दों के मकड़जाल में फंसाकर, अँधेरे में भटकाना भी नहीं चाहती, बल्कि मैं अपनी कहानियों की रोशनी में, अपने समाज की कुरीतियों और विषमताओं को उजागर करना चाहती हूँ जिससे कि हमारा समाज सबल और निर्मल बने तभी तो, किसी भी घटना को लेकर मैं, महीनों सोचती रहती हूँ, कि मैं जो कुछ लिखने जा रही हूँ, उससे हमारे समाज को क्या प्राप्त होगा? जब तक यह तय नहीं हो जाता, मैं लिखने नहीं बैठती हूँकभी-कभी अपने सगे-सम्बन्धी या गुरु, मित्रों से ऐसी घटनाएं सुनने मिलती हैं, कि उन्हें सहज ही कहानी का रूप दिया जा सकता है पर कोई भी घटना, महज सुंदर और चुस्त शब्दावली का चमत्कार दिखाकर ही कहानी नहीं बन जाती उसमें क्लाइमेक्स का होना भी जरुरी है, और वह भी मनोवैज्ञानिक इन सब स

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  • Språk:
  • Hindi
  • ISBN:
  • 9798223568049
  • Bindende:
  • Paperback
  • Sider:
  • 110
  • Utgitt:
  • 3. juni 2023
  • Dimensjoner:
  • 152x7x229 mm.
  • Vekt:
  • 172 g.
  • BLACK NOVEMBER
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Beskrivelse av नींद हमारी, ख़्वाब तुम्हा

'नींद हमारी, ख़्वाब तुम्हारे' के पात्र-पात्री के नाम काल्पनिक हैं, पर घटना मेरे अनुभव पर आधारित है इसमें कहीं भी मेरी कल्पना की हवाई उड़ान, आपको नहीं मिलेगी पर हाँ, घटना में रंग भरने की कोशिश मैंने अवश्य की है मगर ऐसा करते, मैंने इस बात का पूर्णतया ख्याल रखा है, कि कहीं पर भी बेवजह रंग की अधिकता, या न्यूनता नहीं हो, साथ ही किसी भी पात्र-पात्री के साथ शब्दों का चयन करते वक्त बेइंसाफी न हो जिनको जितना अधिकार प्राप्त है, उतना ही अधिकार मिले, उससे बंचित न रह जाये इसके लिए, कहानी लिखने बैठने से पहले मैं अपना क्रोध, लोभ, इर्ष्या, दोस्ती, घृणा, तथा पीड़ा इत्यादि को अपने दिल से निकाल देती हूँ, जिससे कि इंसाफ करते, ये सभी इनके बीच दीवार बनकर खड़े न हो जायें और मैं स्वतंत्र होकर लिख सकूँकिसी घटना से सम्मोहित होकर उसे कहानी का रूप मैं नहीं देती, जब तक कि कहानी किसी दार्शनिक और भावनात्मक सत्य को प्रकट न करे जब तक इस प्रकार का कोई आधार नहीं मिलता, मेरी कलम नहीं उठती एक बात और, मैं किसी भी हाल में अपने पाठकों को अपने शब्दों के मकड़जाल में फंसाकर, अँधेरे में भटकाना भी नहीं चाहती, बल्कि मैं अपनी कहानियों की रोशनी में, अपने समाज की कुरीतियों और विषमताओं को उजागर करना चाहती हूँ जिससे कि हमारा समाज सबल और निर्मल बने तभी तो, किसी भी घटना को लेकर मैं, महीनों सोचती रहती हूँ, कि मैं जो कुछ लिखने जा रही हूँ, उससे हमारे समाज को क्या प्राप्त होगा? जब तक यह तय नहीं हो जाता, मैं लिखने नहीं बैठती हूँकभी-कभी अपने सगे-सम्बन्धी या गुरु, मित्रों से ऐसी घटनाएं सुनने मिलती हैं, कि उन्हें सहज ही कहानी का रूप दिया जा सकता है पर कोई भी घटना, महज सुंदर और चुस्त शब्दावली का चमत्कार दिखाकर ही कहानी नहीं बन जाती उसमें क्लाइमेक्स का होना भी जरुरी है, और वह भी मनोवैज्ञानिक इन सब स

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