Om योग विज्ञान - मुद्रा, बंध व चक्रों का प्रभाव
भारतवर्ष में वैदिक कालखण्ड के समय से लेकर आज तक किसी भी रोग या असाध्य रोग को दूर करने के लिए जड़ी-बूटियों के प्रयोग के साथ-साथ भगवान की भक्ति और भक्ति के साथ पूजा-अर्चना करने की प्रथा चली आ रही है। . क्या हमने इस पर ध्यान से जानने की कोशिश की है कि क्या इससे सिर्फ मन को संतुष्टि मिलती है या इसका कोई वैज्ञानिक आधार भी है। चूंकि किसी भी बीमारी के इलाज के लिए 'दवा और दुआ' दोनों को अपनाने की चर्चा हमारी अध्यात्मिक किताबों और इतिहास के पन्नों में मिलती है, जिसका गहराई से अध्ययन करने की जरूरत है। यह शरीर पांच तत्वों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से मिलकर बना है। शरीर में पांच कोश होते हैं जैसे अन्नमय कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय कोश और आनंदमय कोश। शरीर, मन और आत्मा तभी स्वस्थ रहते हैं जब शरीर में इन तत्वों या कोशिकाओं का संतुलन स्वस्थ रहता है। इनका असंतुलन या अस्वस्थ होना तन और मन में रोग उत्पन्न करता है। इन्हें फिर से संतुलित और स्वस्थ बनाने के लिए हस्त मुद्राओं का प्रयोग किया जा सकता है। इसी क्रम में इस पुस्तक "योग विज्ञान - मुद्रा, बन्ध और चक्रों का प्रभाव" में मूलाधार चक्र से ऊर्जा को क्रिया द्वारा सहस्रार चक्र तक कैसे पहुँचाया जाए और स्थूल शरीर में महत्वपूर्ण प्राण ऊर्जा का संचार करके जीवन को कैसे पुण्यमय बनाया जाए, बताया गया है और मुद्रा और बंध की आसान विधि से चक्रों को जगाने की विधि भी बताई गई है।
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