Om कँटीले तार की तरह
'ये कविताएँ सामाजिक रूप से सजग हैं। विडंबनाओं, विषमताओं की सही पहचान करती हैं। उनकी लौकिकता दृष्]टव्]य है। वे अपना समय दर्ज करती हैं। सवाल करती हैं। कविता जिन सरोकारों से सामाजिक, नागरिक और अंतर्जगत का व्]यक्तित्]व बनती है, प्राय वे इन कविताओं में जगह-जगह अभिव्]यक्]त हैं। ये किसान जीवन से लेकर नागर सभ्]यता के नवीनतम संकटों को देखती हैं। लोकतांत्रिक, संवैधानिक अधिकारों, स्]त्री अस्मिता के प्रश्]न, समानता, प्रेम, स्]वतंत्रता, सत्]ता संरचनाओं की आलोचना के कार्यभार सहित सांप्रदायिकता एवं कविता की भूमिका की चिंताएँ इनमें व्]याप्]त हैं। अभिधा प्रधान है लेकिन कविताओं में वह ज़रूरी संदेह और आशा भी समाहित है जो कवियों की आगामी काव्]ययात्रा के प्रति उत्]सुक बना सकती है। निकट भविष्]य में ये कवि अधिक परिपक्]वता और अधिक संयत कहन, दृष्टिसंपन्]न प्रतिबद्धता के साथ विकसित होंगे, इस आश्]वस्ति के बीज भी यहीं बिखरे हुए हैं।' - कुमार अम्बुज
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