Om Covid-19
संक्रमण समाज को त्रस्त और भ्रमित कर रहा था। पूरा विश्व अपनी तरह से जूझ रहा था। भारत भी, भारतवासी भी। सबसे कठिन परीक्षा की घड़ी समाज-सेवी, राजनीतिक एवं गैर-राजनीतिक संगठनों की थी और हर व्यक्ति कोरोना से अपनी ताकत से जूझ रहा था। मृदुलाजी ने कलम उठाई और कलम को हथियार बना लिया, अपने ढंग से कोरोना से लड़ने के लिए; उसी का प्रतिफल है यह उपन्यास। ग्रामीण अंचल में मुखिया की बूढ़ी माँ ने अपने बेटे को आयुर्वेद से ठीक किया तो शहर में नव-नियुक्त डॉ. मयंक और डॉ. माला की शिक्षा से ज्यादा उनका संस्कार कोरोना से लड़ने में काम आने लगा। अस्पताल के अंदर-बाहर की घटनाओं का विस्तृत वर्णन और पैदल घर लौटते मजदूरों की यात्रा-गाथा है। एक धागा कोरोना का पिरो गया 138 करोड़ को। अनंत अनुभव सबके साझे से। भारत ने इससे पहले शायद ही कभी देखा हो, कोई भी ऐसा अनुष्ठान, जिसमें सब शामिल हो, जो सबको छूता हो, 'न भूतो, न भविष्यति'।
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