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Bøker av Malvender Jit Singh Waraich

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  • av Malvender Jit Singh Waraich
    469,-

    यह पुस्तक 'भगत सिंह को फांसी-1' का ही दूसरा भाग है ! इसमें लाहोर साजिश केस के दौरान हुई 457 गवाहियों में से महत्तपूर्ण गवाहियों के तो पूर्ण विवरण दिए गए हैं जबकि शेष गवाहियों के तथ्य-सार दिए गए हैं ! शहीद सुखदेव ने इस दस्तावेज का बारीकी से अध्ययन किया था और उनके द्वारा अंकित की गई टिप्पणियों का उल्लेख सम्बंधित गवाहियों के ब्योरे में किया गया है ! यहाँ यह कहना भी प्रासंगिक है कि इस एतिहासिक दस्तावेज को पहली बार प्रकाशित किया जा रहा है, जिसके द्वारा पाठको को अनेक विचित्र तथ्य जानने का अवसर प्राप्त होगा ! जिक्र योग्य है कि ये गवाहियों विशेष ट्रिब्यूनल के समक्ष 5 मई, 1930 से 26 अगस्त, 1930 तक हुई थीं, जबकि इससे पूर्व 10 जुलाई, 1929 से 3 मई, 1930 तक मुकदमा विशेष मजिस्ट्रेट की अदालत में चला थ

  • av Malvender Jit Singh Waraich
    443,-

    राम प्रसाद बिस्मिल को फाँसी व महावीर सिंह का बलिदान शताब्दियों की पराधीनता के बाद भारत के क्षितिज पर स्वतंत्रता का जो सूर्य चमका, वह अप्रतिम था। इस सूर्य की लालिमा में उन असंख्य देशभक्तों का लहू भी शामिल था, जिन्होंने अपना सर्वस्व क्रान्ति की बलिवेदी पर न्योछावर कर दिया। इन देशभक्तों में रामप्रसाद बिस्मिल का नाम अग्रगण्य है। संगठनकर्ता, शायर और क्रान्तिकारी के रूप में बिस्मिल का योगदान अतुलनीय है। 'काकोरी केस' में बिस्मिल को दोषी पाकर फिरंगियों ने उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया था। इस प्रकरण का दस्तावेजी विवरण प्रस्तुत पुस्तक को खास बनाता है। शहीद महावीर सिंह साहस व समर्पण की प्रतिमूर्ति थे। तत्कालीन अनेक क्रान्तिकारियों से उनके हार्दिक सम्बन्ध थे। इनका बलिदान ऐसी गाथा है, जिसे कोई भी देशभक्त नागरिक गर्व से बार-बार पढ़ना चाहेगा। पुस्तक पढ़ते समय रामप्रसाद बिस्मिल की ये पंक्तियाँ मन में गूँजती रहती हैंदृ सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़घए क़ातिल में है। एक संग्रहणीय पुस्तक।.

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